Saturday, May 17, 2025

Love Story


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तेरी साँसों में बसी रात

तेरी साँसों में बसी रात

आराध्या का दिल तेज़ी से धड़क रहा था। शिवांश की आँखें उसकी आँखों में उतनी ही गहराई से उतर रही थीं, जितनी आराध्या उसकी साँसों में डूब रही थी। ये पहली बार था — जब किसी ने उसे इतनी कोमलता से देखा था, जैसे उसकी आत्मा को भी चूमा हो।



मोमबत्ती की धीमी रोशनी में, जब शिवांश ने उसके कंधे से साड़ी का पल्लू सरकाया, आराध्या की साँसें थम गईं। उसकी त्वचा पर पहली बार किसी और की उँगलियों का स्पर्श — वो भी इतना धीमा, इतना जादुई — कि उसकी आँखें अपने आप बंद हो गईं।

शिवांश की उँगलियाँ उसकी पीठ पर एक कविता लिख रही थीं। हर स्पर्श के साथ आराध्या की रूह सिहर रही थी। जैसे-जैसे वो नीचे की ओर गया, उसकी ज़बान ने उसकी रीढ़ की हड्डी पर थरथराती गर्मी छोड़ दी। आराध्या की उँगलियाँ चादर में कसकर धँस गईं।

जब उसके होंठ उसकी जांघों तक पहुँचे, आराध्या ने खुद को रोकने की कोशिश की — मगर जिस्म ने इज़ाजत नहीं दी। उसकी सिसकी शिवांश के कानों में पिघलती चली गई। पहली बार किसी ने उसे उस जगह छुआ जहाँ उसकी रूह तक थमी हुई थी।


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शिवांश ने जब उसे भीतर महसूस किया — बेहद धीरे, बेहद संभालकर — तो आराध्या को ऐसा लगा जैसे कोई उसके खालीपन को भर रहा हो। कोई उस तक पूरी तरह पहुँच गया हो, जहाँ पहले कभी कोई नहीं आया।


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हर गति के साथ, हर ठोकर के साथ — आराध्या का बदन थरथराता रहा। उसकी उंगलियाँ शिवांश की पीठ में गहराई तक धँसी थीं, और उसके होंठों से हर बार एक धीमी कराह निकलती, जो खुद उसके लिए नई थी।



"रुको मत..." उसने धीमे स्वर में कहा, "मुझे तोड़ दो या पूरा बना दो… पर अधूरी मत छोड़ो..."


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रात के हर घंटे में वे एक-दूसरे में घुलते चले गए — जैसे देह और आत्मा दोनों का मिलन हो रहा हो। वो सिर्फ़ संभोग नहीं था, वो आराध्या का शिवांश के आगे आत्मसमर्पण था। उसकी आँखों में आँसू थे — लेकिन वो दर्द नहीं, तृप्ति के थे।



सुबह की धूप कमरे में आई, आराध्या शिवांश की बाँहों में थी। उसका चेहरा शांत, बदन थका हुआ, लेकिन आत्मा पूर्ण। उसने शिवांश के सीने पर हल्का चुम्बन रखा और कहा:


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"अब मुझे कुछ नहीं चाहिए… बस हर रात तेरी बाहों की ये साँसें चाहिए..."



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